मिथिलांचल में नव वर्ष क स्वागत..!!

चैत्र मासक संक्रान्ति सँ नव वर्षक आगमन होय अछि ।
हिन्दु धार्मिक मान्यताक अनुसार, प्रजापती ब्रह्मा चैत्र शुक्ल पक्षक प्रतिपदा तिथि कें सृष्टिक रचना आरम्भ केने छलाह। एहि कारण सँ हिंदू नव वर्ष और नव संवत्सरक शुरुआत मानल जाय अछि ।
एहि उपलक्ष में घरे -घरे नव उल्लास आर आनंदक वातावरण रहै अछि । प्रतेक घरमें कुलदेवि निमित विशेष प्रसादक आयोजन रहैत अछि । जाहिमें अड़वा चाउरक भात,राहरि दालि मुनिगा देल ,नीम-भाटा जे समया अनुकुल स्वास्त वर्धक अछि, केरावक वेसनक वड़ी ,दालि पुरी ,जे मिथिलांचलक प्रशस्त व्यजन अछि ।
मुख्यतः अहि अवसर पर शीतला देविक पुजाक विधान अछि ,जे स्वास्त आर साम्मर्थक देवि छथि, हिनक पुजाक विशेष नीयम अछि , जाहिमें कलश भरबाक नीयम ..जेकरा कुमारी कन्या द्वारा नदी वा पोखड़ी संँ मौन रहि, जल समार आनि गोसाँउनिक सीर में स्थापित मेंकरै छथि ।
भगवतीक आर|धनाक उपरान्त ब्राम्ह -कुमारी भोजन करेवाक विधान अछि ।
एहि प्रसाद मे सँ दोसर दिन लेल रखबाक नीयम अछि ,जेकरा प्रात भने गोसाँउन केँ अर्पन कए पुनः कुमारी भोजन करा ,घरक प्रत्यैक गृहस्ती में उपयोगी वस्तु धुरखुर ,जाँत चुल्हा कें अर्पण कएल जाए अछि आर एक दिनक लेल एकरा सबकें पुर्ण विश्राम रहैत अछि ।
आँगन में तुलसी पर पनिशाला तथा पितर समाधि स्थल ( सारा)पर पुरा वैशाष मास जल चढ़ेबाक नीयम अछि प्रत्यैक गाछ-वृक्ष पशु पक्षी जीव – जन्तु कें जल देवाक ई प्रथा सम्पुर्ण जीव – जगत चराचर सँ प्रेम,आर सौहार्द तथा प्रकृति प्रति आदर आर रक्षा भाव सहज सार्वभुमिक बना दैत अछि।

-रूबी झा

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