कियाक अवहेलित भेल अप्पन मैथिली भाषा ?? मैथिली भाषाक इतिहास..!!
गंगा बहथि जनिक दक्षिण दिशि पूब कौशिकी धारा।
पश्चिम बहथि गंडकी उत्तर हिमवत वन विस्तारा॥
कवि चंदा झा कें ई दुइ शब्द , मिथिलाक यथार्थ चित्रण करैत अछि । भाषा कोनहुं क्षेत्रक भौगोलिक महत्व कें प्रमुखतया प्रभावित करैत छैक।
एकर वर्णन वृहद्विष्णुपुराण में, मिथिला खण्ड में मिथिलाक सीमाक विषय में सेहो वृहद् वर्णन अछि । पुर्व मे कोशी,पश्चिम में गंडक तथा उत्तर में हिमालयक तराई क्षेत्र कें पवित्र करैत सुरसरि सम्पुर्ण मिथिलाकें दक्षिण तक आह्लादित् करैत छथि ।
मिथिलाक माहात्म्य कें वर्णन महाभारत , रामायण तथा पुराण में एकर महता तिर्थराज प्रयाग सँ भेल अछि। जाहि धरती पर शक्ति स्वयं देह धारण कय सति , सावित्री तथा साक्षात लक्ष्मी रुप में सीता अवतरित भेलि ,ओहि पुण्यमयी धरतिक , भाषा ,साहित्य तथा कला, वखान केनाए शब्द सँ संभव नहिं।
भाषाक दृष्टिकोण सँ, ई आर्य परिवारक , भाषा होयबाक कारणे ई अन्य भारतीय भाषक निकटता समचिनी अछि ।
तैं हेतु मैथिली शब्दक प्रयोग अन्य भाषा में सेहो भेटैत अछि, एकर सब सँ प्रमुख दृष्टातं ई अछि जे मैथिली भाषी सहजता सँ अन्य भाषाक अर्थ बुझी जाइत छथि, किंतु दोसरा कें बुझबा में असोकर्ज होय छैनि ।
कोनो भाषा के अपन लिपी भेनाय , ओहि भाषा कें विकासक चरम मानल जा सकैछ । लिपीक आवश्यकता विकासक द्योतक थिकै, कितुं लिपिक प्रमाण भेटलो उतरांत ओहि समयक साहित्य तथा अन्य कनो सामग्री नहिं भेटलाक कारण कोनो आधार नहिं भेटैत अछि। लिपिक उदारण दरभंगा जिला अन्तर्गत कुश्वेश्वरस्थान कें समीप तिलेश्वरस्थान कें मंदीर में लिखल लिपि एहि संदर्भक पुष्टि करैत अछि ,जेकरा विद्वान वर्ग मिथिलाक्षर कें समीप पबैत छथि ।
मैथिली विकास क्रम में अवरोधक कारण जे ..ओहि समय भारत के एहि क्षेत्र में ,राजनैतिक अस्थिरता प्रमुख कारण छल , अस्थिर राज्य व्यवस्था ,विकास क्रम कें वाधित करैत छैक, एकर सब सँ बेसी प्रभाव ओहि ठामक कला , साहित्य भाषा पर परैत छै।
1375- 1526, धरि एहि क्षेत्र में तुगलक, सैयद,लोदी तथा मुगल शासक के प्रभाव रहल। एहि कालांतर में मैथिली अवहेलना भेनाइ स्वभाविक छल। राज -काज सभ अरबि, फ़ारसी में चलय लागल अतः मैथिली शक्ति सिद्धान्त सँ ,पाछु भऽ गेली।
मुगल साम्राज्य कें व्यवस्थित भेलाक बाद ,मैथिली पुर्स्थापना दिस अग्रसर भेल तथा एकर बाद ,मैथिली भाषा ,देवनागरी लिपि प्रति आकृष्ट भेल, तथा साहित्यिक रचना क्रम शुरुवात भेल। ज्योतिश्वर ठाकुर,वर्णरत्नाकर कें रचना अवहट्ट भाषा में केलैन्ह ।एहि क्रम में कवि कोकिल विद्यापति किर्तिलता के भाषा कें अवहट्ट मानने छलाह। अवहट्ट भाषा में ई सरसता देख जाइत अछि जे,जन भाषा सँ जुड़ल रहबाक कारणे नव-नव शब्द भेटबाक स्रोत बनल रहैत छै ।
भाषाक दुई पक्ष होइत छै ,मौखिक तथा लिखित । मैथिली में अनेको परिर्वतित बोली ,जेकरा उप बोली कहल जाइत अछि ,ओ सामाजक विभिन्न वर्गक व्यवहारिक क्रिया-कलाप महत्व रखैत अछि। ई अनेको साान्तर बोली अपन अस्तित्व, दशा तथा दिशा पर निर्भर करैत अछि,जाहिमें -दक्षिणी मैथिली ,पुर्वी मैथिली,पश्चिमी मैथिली , तथा उत्तरी मैथिली , छिका , छिकी , जोलहा , ठेंठ आदि।
एहिमें उत्तरी मैथिली जे मिथिलांचल के सभ्रांत ब्राम्हणक गांव में बाजल जाईत छै, जे व्याकरणो दृष्टि सँ परिभाषित छै , ताहि कारणे एकरा लिखित भाषाक लेल उपयुक्क मानल गेल । एहि में अनेको रचनाकार अपन रचना विविध विधा में कैए लैन्हि ,जाहि में कोईलख निवासी उमापति , नंदीपति रमापति , महिपति तथा मनबोध आदि रचनकार प्रमुख छैथि।
तत्पश्चात आधुनिक काल में “चंदा झा“ अपन मैथिली रामायण कें रचना कऽ, मैथिली भाषा के गौरवान्वित केलैन्हि । मैथिली भाषा कें लेखन शैली कें वैज्ञानिक पद्धति के अनुरुप व्यवस्थित करबा में महा-महो उपाध्याय पण्डित दीनबंधु झा , रमानाथ झा , उमेश मिश्र ,कें योगदान सराहनीय अछि।
– रूबी झा