मिथिलाक अग्रदूत
हमर घरक सब सँ मुल्यवान वस्तु छल पुरणा पत्र- पत्रिका ,जाहि में मैथिली, हिंदी सब पत्रिका ,अलमिरा में राखल छल। जखैन चुपचाप सब सँ नुका कऽ ,हम चित्र सँ आघात करैक लेल तत्पर भेलहुँ तऽ,देवाल भिजल छल ,कारण समस्त पुस्तक भंडार पर दिवारक आक्रमण ।तुरंत दिवार के झारि एक-एक टा पन्ना देखैत ओहि में हेरा गेलहुँ।
हरिमोहन झा क लेख जे , प्रो०. श्री रमानाथ झाक अनुरोध पर लिखल गेल। “बाबाक संस्कार” सेहो एहि संग्रह में छल। संगहि हुन जीवनी तथा हुनक विषय में प्रमुख जानकारी तथा हुनक लिखल सब सँ हास्य रचना “खट्टर काका” विवरन ।
मिथिलाक,गौरव हरिमोहन झा आधुनिक मैथिली गद्यकेँ ताहि स्थानपर पहुँचा देलनि। जेतए प्राचीन युगमे विद्यापति मैथिली काव्यकेँ उत्कर्षक जाहि उच्च शिखरपर आसीन कएलनि ।हास्य व्यंग्यपूर्णशैली में सामाजिक-धार्मिक रूढ़िवादी, अंधविश्वास आऽ पाखण्ड पर चोट हिनकर लेखनक अन्यतम वैशिष्ट्य रहलनि। मैथिलीमे आइयो सर्वाधिक कीनल आऽ पढ़ल जायबला पोथी सभ हिनकहि छनि।
हिन्दीमे सेहो १९७१ ई. मे पुस्तकाकार आएल। एकर अतिरिक्त हिनकक स्फुट प्रकाशित-लिखित पद्यक संग्रक “हरिमोहन झा रचनावली खण्ड ४ (कविता)” एहि नामसँ १९९९ ई.मे छपल आऽ हिनकर आत्मचरित “जीवन-यात्रा” १९८४ ई.मे छपल। हरिमोहन बाबूक “जीवन यात्रा” एकमात्र पोथी छल जे मैथिली अकादमी द्वारा प्रकाशित भेल छल आऽ एहि ग्रंथपर हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कार १९८५ ई. मे मृत्योपरान्त देल गेलन्हि।
- रूबी झा