अनंत पूजाक महत्व। अनंत पूजा केला स की की फल भेटइ छई

अनंत चतुर्दशी
एकटा वन में सुमंत नामक ऋषि रहैत छलाह। ओ श्रेष्ठ धर्मपरायण छलाह । किछु दिनक पश्चात हुनक पत्नी दिक्षा सँ पुत्री रत्न प्राप्त भेलनि । ऋषि ओहि पुत्रीक नाम सुशीला राखल । दर्भाग्य वस पुत्री जन्मक किछु दिनक पश्चात ,हुनक मृत्यु भऽ गेल।
सुमंत ऋषि दोसर विवाह एकटा कर्कसा नामक कन्या सँ केलनि,जिनकर स्वभाव नामक अनुकुलें छलनि ।
किछु वर्ष बितलाक बाद सुशीला के विवाह कौण्डिल्य नामक ऋषि सँ भेलनि । जखैनि ओ अपन सासुर जाए लगलि तऽ विमाता अपन क्रुरताक परिचय दैत हुनका संदुक में ईंटा,पथ्थर भरि देल । सासुर अएलाक वादो सुशीला प्रसन्न नहि छलिह ,कारण घरमें दरिद्रताक वास छल।एक दिन ओ अपन समस्या निवारण हेतु भगवान अनंतक पुजा आरम्भ कैलनि ,हुनक पति कौण्डिल्य ऋषि पत्नीक संग पुजा कए पुरा निष्ठा सँ भगवान अनंतक लक्ष्मी नारायन स्वरुपक ध्यान कए जे श्री विष्णुक भौतिक जगत के स्वरुप थिकाह आर वाऽह एहि लोकक इष्ट छथि।
मान्यता अछि भगवान एहि भौतिक जगत में 14 लोक बनाओल जाहि में भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल आर पाताल अछि। अनंतसूत्र के 14 गांठ 14 लोकक प्रतीक स्वरुप अछि।
इ मान्यता अछि जे 14 वर्ष तक लगातार अनंत चतुर्दशीक व्रत रखैत अछि तकरा, विष्णु लोक क प्राप्ति होइत अछि । अनंत सूत्र कें पुरुष दाहिना आर स्त्री बायाँ हाथ में बान्हैत छथि।

अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।
अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥

-श्रीमति रूबी झा

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