कटैत श्रेत्र,बटैत समाज
घ्राण शक्ति,
कटैत श्रेत्र,बटैत समाज,
कोशीक पेट खालि छल आर सबटा पसार गैऽ, बछड़ु ,बकरी, छकरी,सब शान्त स्वच्छ आकाशक क आँगन में विचरण करैत छल । किछु गाय पानि पिवैक लेल कोशीक कचहैर में गेल ,तऽ पानिक रंग आर तापमान बदलि चुकल छल । गाय रंभैऽ लागल, चरबाहा बुटुकुनमा दौड़ल आर पानि चुरुक में लऽ बाजल रौ !!. छौड़ा सब जल्दि चलैचल..
आय फेर कोशी पानि में तिब्बतिया गेरुवा रंग गिरा देलकउ .. !!
नै तऽ हिमालय पर वैशल बुढ़बा बाबाक जटा सँ त नियमे ।
देखै छहि ई !…उत्तरक मेघ कारिया आफत लकेऔतउ ..!!
चल-चल जल्दि चल !
किछुए कालक बाद विजली चमकैत मुसलाधार वर्षा हुए लागल ।
बाढ़िक प्रकोप फेर सब समुदाय कें खण्ड -खण्ड में बाँटि देलक ।
एहि क्षेत्रक किछु आदिवासी समुदाय जे प्राकृतिक संकेत कें निक जेंकाँ जनैत अछि ।
जहिना किछु परिवर्त्तन बुझवा में अवैत छैक ,तहिना ओ अपन अनुमान सत्यापित करैक लेल ,
जंगल में प्रस्थान करैत अछि-जेना पशु-पक्षी,किट-पतंग ,हवाक गंध आर ओकर दिशा ।
सुनल ऐछ कोनो विपतिक आभास पहिने पशु-पक्षी कें भेटैत छैक ।
चुटि अपनाकें सब सँ पहिने एकरा भाँपि अपन आवास बदलैत अछि ।
अखनो ई समुदाय केँ विपति काल में पुरान गाछ पड़ बाँसक मचान या खोपड़ी बना आश्रय पबैत छथि।
किंतु किछु स्वार्थी लोकनि प्रकृति केँ ध्वस्त करै लेल त्तपर छैथि।
नैं अछि ओतय मृत्यूक लेख,
जन-जीवन ,बाढ़िक भेंट।
-रूबी झा