कोसी पेटक गाम ‘कर्णपुर,!!!
बारह कोसक यात्रा सँ बाबा बड़ थाकि गेल छलाह, सोचलैनि किछु काल पाखड़िक गाछ तर विलमाली । धारक कातक शीतल हवा में हुनका कखनि आँखि लागि गेलैन से नहिं जानि। जखैन आँखि खुजल तऽ गौधूलि वेर भए गेल छल । सोचलैनि जतबा धरि गाम जाएब ततबा में तऽ मुनाहारि राति भए जाएत , ते कियाक नै अपन मित्र गौड़ीनाथक ओतय राति विलमा कए अन्हरोखे बाध-बोन कलम-गाछी देखेत हवेली पर पहुँच जाए।
गुटरू खबास सँ कहलैनि कियाने एतय राति विलमा काल्हि पह फटिते घरमुहाँ रास्ता पकरि । गुटरु खबास बजला हँ..! गिरहत कियाक नै..! बाबाक मित्रक घर किछुये दुर पर छलैन्हि | देखिते बजला..केना हौ आबह !- आबह ! आय तऽ पश्चिमे सँ दिनकर दर्शन देल , हमर अहोभाग्य जे तौं अयलह । कुशल क्षेमक वाद ..भोजन- भात भेल आर खरिहाने में खटिया ओछा बाबा दुनुमित्र सुति रहला। गुटरु खवास सेहो शितलपाटी बिछा सुति रहल। गुटरु महराई ठनलक ..! जोड़-जोड़ सँ कोसीक विरहा गावय लागल – ‘’कोसीक कछहरि बसय मल्हार, नदियापार लगादै हमार, नहीं चाहि धन -बित नहीं किछु आर , दैऽह अभय वड़ , कुल -परिवार ।.,, गीत गबैत गुटरु खवास सुति रहला ,।
राति बारह बजे कुकूर कौआ झामरि लिय लागल , बाबाक प्राण भावि आशंका सँ कापय लागल,गूटरु खिहारी भगौलक , आर बाजल ! कुकुरक जाति रातियो केने दम धरैए,.. कहुना सब करोट बदलैत राति बितौलनि । गाम में चारिए बजे पसार खुजै छैक, सब जखैन बांध पर गेल तऽ हाकरोस करए लागल, बाबा धरफराय उठला,दौड़ला बान्ह पर, जखैन आगु देखल तऽ धरति पैएर तर सँ घुसकि गेल , आँखिक सामने चकमक चानी सदृश्य , ..दृश्य घुमय लागल । रातिए में कोसी अपन गाल में गामक-गाम समा लैएने छलि, ‘’आब नैए ओ नगरी नैए ओ ठाँउं ,, बाबा कल्पना करैत सिहरी रहल छलाह!!, कतय गेल हमर चतुरसाल हवेलि , टोल -पड़ोस, हेंजक हेंज गाय -बरद, वीगहाक – बिगहा कलम-गाछी,। नै ई अनर्थ दैवो सँ स्वीकार नै , इ माता नहिं डायन छथि, जे अपनहुँ शन्तान के नै बख्सल, आब कर्णपुर गाम सबहक स्मृति में शेष रहत !!!
-श्रीमती रूबी झा