मिथिला – भौगोलिक महत्व
कौशिकीन्तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्यवै।
योजनानि चतुर्विंश व्यायामः परिकीर्त्तितः॥
गङ्गा प्रवाहमारभ्य यावद्धैमवतम्वनम् ।
विस्तारः षोडशप्रोक्तो देशस्य कुलनन्दन॥
वृहद्विष्णुपुराण में मिथिलाक सीमा केर तथा भौगोलिक स्थितिक कऽ स्पष्ट उल्लेख कएल गेल अछि । मिथिलाक चर्चा महाभारतो में श्री कृष्ण पाण्डु –पुत्र भीम तथा अन्य पाँचो भाय कें मगध यात्राक समय मिथिलाक भौगोलिक स्थिति कें वर्णन कैने छथि।
रामायण में तऽ मिथिलाक वर्णन , महाकाव्यक अभिन्न अंग अछि । ई धरती एहने रमणीय अछि , जेतय बेर-बेर शक्ति , बेटी बनि अवतरित भेली। ई सती, सीता आर सावित्रीक धरती छी , जेतय फल ,फुल तथा अनेक दुर्लभ पशु ,पक्षी बास करैत अछि । एहि क्षेत्र कें प्राकृतिक एहन अनुकम्पा अछि जे , महत्वपुर्ण नदी एतहि सँ होत प्रस्थान करैत छथि। एहि में -:
नदी –
कोसी
कमला
विण्ववती (विल्ववती= बेलौंती)
यमुना (=जमुने, अधवारा समूहक नदी छी जे, बागमती में मिलैत, ई नेपाल में जनकपुरक समीप सँ निकलि हरलाखी तक बहैत छथि ।)
गैरिका (=गेरुआ, बाद में धारा-भेद सँ प्रचलित अनेक नाम सँ प्रचलित-फरैनी, कजला, कमतारा, गोरोभगड़, चकरदाहा, नीतिया धार आदि अनेको प्राचीन नाम भेटैत अछि)
जलाधिका वाग्मती (बागमती)
व्याघ्रमती (छोटी बागमती, मूलत: बघोर नदी छी, जे दक्षिण दरिभंगाक के बीच सँ भऽ कें बहैत छथि ।)
विरजा
गण्डला (गण्डक/बूढ़ी गण्डक)
लक्ष्मणा (लखनदेई)
गण्डकी
अकुक्षि वर्त्तिनी (भुतही बलान)
जङ्घा (संभवतः धेमुरा)
जीवापिका (जीववत्सा= जीबछ)
एकर अतिरिक्तो अनेक छोट-छोट नदी एतय निवास करैत छथि ,तथा पौराणिक नाम तीरभुक्ति नाम कें चरितार्थ करैत छथि।
दार्शनिक स्थल –
जेतए गंगा अपन वहिन,कें संग वास करैत होथि ,ओतय आदिदेव निवास नहिं करैथि ई संभवे नहि । ताहि कारण महादेव सम्पुर्ण दिशा ,तथा कोण सँ मिथिलाक रक्षा करैत छथि ।
शिलानाथ
कपिलेश्वर (पूर्व में)
कूपेश्वर (आग्नेय कोण में)
कल्याणेश्वर (दक्षिण में)
जलेश्वर (पश्चिम में)
जलाधिनाथ क्षीरेश्वर (उत्तर में)
त्रिजग महादेव
मिथिलेश्वर महादेव (ईशान कोण में)
भैरव (नैऋत्य कोण में)
अहिल्या स्थान सेहो , प्रमुख ऐतिहासिक दार्शनिक स्थल अछि, जे रामायण काल सँ प्रसिद्ध मंदिर अछि | सीतामढ़ी सीताक जन्म-स्थली के रूप में पौराणिक ग्रंथ सब में वर्णित अछि। त्रेता युग में राजा जनकक पुत्री तथा भगवान रामक पत्नी देवी सीता केर जन्म पुनौरा में भेल छलैन्हि।
कला तथा आर्थिक स्रोत
सिक्की घास सँ बनल घरेलु उपयोगक सामान जेना डाली, पथिया , मौनी ,तथा अनेक सामान बनाओल जाइत अछि । जे देखैत बड़ सुन्दर आर मनमोहक लगैत अछि। शहर में तऽ पैघ -पैघ ,घर में प्रवेश करितहिं आगंतुक के, ध्यान आकृष्ट करैत अछि।
वस्तुतः सिक्की कला मिथिलाक गरीब- धनिक सभ एहि कला के यत्नपुर्वक बनबैत छछि ,किंतु आब ई एकटा आर्थिक उपार्जनक साधन बनवा लेल संघर्सरत अछि। सिक्की घास, मुंज घास , खजुरक पात आर खर सँ विभिन्न प्रकारक वस्तुक निर्माण कऽ ओकरा विवाहक शुभ अवसर पर बेचि कैं जीविक| पार्जन करैत छथि। । गरीब ग्रामीन स्त्री पोखैर , दियरा आर तालाब में उपजल घास कें काटि कऽ हाट-बाज़ार में बेचि आमदनिक साधन बनबैत छथि ।
मिथिला चित्रकला –
साधारणतया हिन्दू देवि-देवता कें चित्र ,प्राकृतिक दृश्य जेना- सूर्य – चंद्रमा, धार्मिक खिस्सा आधार मानिगाछ-वृक्ष, तुलसी , माँछ -कौछ आर विवाहक दृश्य देखै में भेटैत अछि। मधुबनी चित्रकला में अनेको तरहक भित्ति चित्र आर अरिपनक निर्माण कैएल जाए अछि।एकर प्रचार ,प्रसार देश-विदेश में भेलाक कारणें आर्थिक साधनक स्रोत बनिरहल अछि।
–रूबी झा